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7 Days Course -Hindi- (Brahma Kumaris)

TAMIL/HINDI/NEPALI

DAY-1    DAY-2    DAY-3    DAY-4     DAY-5    DAY-6    DAY-7

 सात दिन का कोर्स

तीसरा दिन 

सर्व आत्माओं का पिता परमात्मा एक है और निराकार है


प्राय: लोग यह नारा तो लगते है कि हिंदूमुस्लिमसिक्खईसाई सभी आपस में भाई-भाई है”, परन्तु वे सभी आपस में भाई-भाई कैसे है और यदि वे भाई-भाई है तो उन सभी का एक पिता कौन है- इसे वे नहीं जानते देह की दृष्टि से तो वे सभी भाई-भाई हो नहीं सकते क्योंकि उनके माता-पिता अलग-अलग हैआत्मिक दृष्टि से ही वे सभी एक परमपिता परमात्मा की सन्तान होने के नाते से भाई-भाई है यहाँ सभी आत्माओं के एक परमपिता का परिचय दिया गया है इस स्मृति में स्थित होने से राष्ट्रीय एकता हो सकती है |

प्राय: सभी धर्मो के लोग कहते है कि परमात्मा एक है और सभी का पिता है और सभी मनुष्य आपस में भाई-भाई है परन्तु प्रश्न उठता है कि वह एक पारलौकिक परमपिता कौन है जिसे सभी मानते है आप देखगें कि भले ही हर एक धर्म के स्थापक अलग-अलग है परन्तु हर एक धर्म के अनुयायी निराकार, ज्योति-स्वरूप परमात्मा शिव की प्रतिमा (शिवलिंग) को किसी-न-किसी प्रकार से मान्यता देते है भारतवर्ष में तो स्थान-स्थान पर परमपिता परमात्मा शिव के मंदिर है ही और भक्त-जन ओम् नमों शिवाय’ तथा तुम्हीं हो माता तुम्हीं पिता हो’ इत्यादि शब्दों से उसका गायन व पूजन भी करते है और शिव को श्रीकृष्ण तथा श्री राम इत्यादि देवों के भी देव अर्थात परमपूज्य मानते ही है परन्तु भारत से बाहरदूसरे धर्मों के लोग भी इसको मान्यता देते है यहाँ सामने दिये चित्र में दिखाया गया है कि शिव का स्मृति-चिन्ह सभी धर्मों में है | 

अमरनाथविश्वनाथसोमनाथ और पशुपतिनाथ इत्यादि मंदिरों में परमपिता परमात्मा शिव ही के स्मरण चिन्ह है | ‘गोपेश्वर’ तथा रामेश्वर’ के जो मंदिर है उनसे स्पष्ट है कि शिव’ श्री कृष्ण तथा श्री राम के भी पूज्य है रजा विक्रमादित्य भी शिव ही की पूजा करते थे मुसलमानों के मुख्य तीर्थ मक्का में भी एक इसी आकार का पत्थर है जिसे कि सभी मुसलमान यात्री बड़े प्यार व सम्मान से चूमते है उसे वे संगे-असवद’ कहते है और इब्राहिम तथा मुहम्मद द्वारा उनकी स्थापना हुई मानते है परन्तु आज वे भी इस रहस्य को नहीं जानते कि उनके धर्म में बुतपरस्ती (प्रतिमा पूजा) की मान्यता न होते हुए भी इस आकार वाले पत्थर की स्थपना क्यों की गई है और उनके यहाँ इसे प्यार व सम्मान से चूमने की प्रथा क्यों चली आती है इटली में कई रोमन कैथोलिक्स ईसाई भी इसी प्रकार वाली प्रतिमा को ढंग से पूजते है ईसाइयों के धर्म-स्थापक ईसा ने तथा सिक्खों के धर्म स्थापक नानक जी ने भी परमात्मा को एक निराकार ज्योति (Kindly Light) ही माना है | यहूदी लोग तो परमात्मा को जेहोवा’ (Jehovah) नाम से पुकार्तेहाई जो नाम शिव (Shiva) का ही रूपान्तर मालूम होता है जापान में भी बौद्ध-धर्म के कई अनुयायी इसी प्रकार की एक प्रतिमा अपने सामने रखकर उस पर अपना मन एकाग्र करते है |  

परन्तु समयान्तर में सभी धर्मों के लोग यह मूल बात भूल गये है कि शिवलिंग सभी मनुष्यात्माओं के परमपिता का स्मरण-चिन्ह है यदि मुसलमान यह बात जानते होते तो वे सोमनाथ के मंदिर को कभी न लूटतेबल्कि मुसलमानईसाई इत्यादि सभी धर्मों के अनुयायी भारत को ही परमपिता परमात्मा की अवतार-भूमि मानकर इसे अपना सबसे मुख्य तीर्थ मानते और इस प्रकार संसार का इतिहास ही कुछ और होता परन्तु एक पिता को भूलने के कारण संसार में लड़ाई-झगड़ा दुःख तथा क्लेश हुआ और सभी अनाथ व कंगाल बन गये |


परमपिता परमात्मा और उनके दिव्य कर्तव्य


सामने परमपिता परमात्मा ज्योति-बिन्दु शिव का जो चित्र दिया गया हैउस द्वारा समझाया गया है कि कलियुग के अन्त में धर्म-ग्लानी अथवा अज्ञान-रात्रि के समयशिव सृष्टि का कल्याण करने के लिए सबसे पहले तीन सूक्ष्म देवता ब्रह्माविष्णु और शंकर को रचते है और इस कारण शिव त्रिमूर्ति’ कहलाते है तीन देवताओं की रचना करने के बाद वह स्वयं इस मनुष्य-लोक में एक साधारण एवं वृद्ध भक्त के तन में अवतरित होते हैजिनका नाम वे प्रजापिता ब्रह्मा’ रखते है |

प्रजा पिता ब्रह्मा द्वारा ही परमात्मा शिव मनुष्यात्माओं को पिताशिक्षक तथा सद्गुरु के रूप में मिलते है और सहज गीता ज्ञान तथा सहज राजयोग सिखा कर उनकी सद्गति करते हैअर्थात उन्हें जीवन-मुक्ति देते है |

शंकर द्वारा कलियुगी सृष्टि का महाविनाश

कलियुगी के अन्त में प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सतयुगी दैवी सृष्टि की स्थपना के साथ परमपिता परमात्मा शिव पुरानी, आसुरी सृष्टि के महाविनाश की तैयारी भी शुरू करा देते है परमात्मा शिव शंकर के द्वारा विज्ञान-गर्वित (Science-Proud) तथा विपरीत बुद्धि अमेरिकन लोगों तथा यूरोप-वासियों (यादवों) को प्रेर कर उन द्वारा ऐटम और हाइड्रोजन बम और मिसाइल (Missiles) तैयार कृते हैजिन्हें कि महभारत में मुसल’ तथा ब्रह्मास्त्र’ कहा गया है इधर वे भारत में भी देह-अभिमानीधर्म-भ्रष्ट तथा विपरीत बुद्धि वाले लोगों (जिन्हें महाभारत की भाषा में कौरव’ कहा गया है) को पारस्परिक युद्ध (Civil War) के लिए प्रेरते हगे |

विष्णु द्वारा पालना

विष्णु की चार भुजाओं में से दो भुजाएँ श्री नारायण की और दो भुजाएँ श्री लक्ष्मी की प्रतीक है | ‘शंख’ उनका पवित्र वचन अथवा ज्ञान-घोष की निशानी है, ‘स्वदर्शन चक्र’ आत्मा (स्व) के तथा सृष्टि चक्र के ज्ञान का प्रतीक है, ‘कमल पुष्प’ संसार में रहते हुए अलिप्त तथा पवित्र रहने का सूचक है तथा गदा’ माया परअर्थात पाँच विकारों पर विजय का चिन्ह है अत: मनुष्यात्माओं के सामने विष्णु चतुर्भुज का लक्ष्य रखते हुए परमपिता परमात्मा शिव समझते है कि इन अलंकारों को धारण करने से अर्थात इनके रहस्य को अपने जीवन में उतरने से नर श्री नारायण’ और नारी श्री लक्ष्मी’ पद प्राप्त कर लेती हैअर्थात मनुष्य दो ताजों वाला देवी या देवता’ पद पद लेता है इन दो ताजों में से एक ताज तो प्रकाश का ताज अर्थात प्रभा-मंडल (Crown of Light) है जो कि पवित्रता व शान्ति का प्रतीक है और दूसरा रत्न-जडित सोने का ताज है जो सम्पति अथवा सुख का अथवा राज्य भाग्य का सूचक है | 

इस प्रकारपरमपिता परमात्मा शिव सतयुगी तथा त्रेतायुगी पवित्रदेवी सृष्टि (स्वर्ग) की पलना के संस्कार भरते है, जिसके फल-स्वरूप ही सतयुग में श्री नारायण तथा श्री लक्ष्मी (जो कि पूर्व जन्म में प्रजापिता ब्रह्मा और सरस्वती थे) तथा सूर्यवंश के अन्य रजा प्रजा-पालन का कार्य करते है और त्रेतायुग में श्री सीता व श्री राम और अन्य चन्द्रवंशी रजा राज्य करते है | 

मालुम रहे कि वर्तमान समय परमपिता परमात्मा शिव प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा तथा तीनों देवताओं द्वारा उपर्युक्त तीनो कर्तव्य करा रहे है अब हमारा कर्तव्य है कि परमपिता परमात्मा शिव तथा प्रजापिता ब्रह्मा से अपना आत्मिक सम्बन्ध जोड़कर पवित्र बनने का पुरषार्थ कर्ण व सच्चे वैष्णव बनें मुक्ति और जीवनमुक्ति के ईश्वरीय जन्म-सिद्ध अधिकार के लिए पूरा पुरुषार्थ करें |

परमात्मा का दिव्य – अवतरण

शिव का अर्थ है – ‘कल्याणकारी’ | परमात्मा का यह नाम इसलिए हैवह धर्म-ग्लानी के समयजब सभी मनुष्य आत्माएं माया (पाँच विकारों) के कर्ण दुखीअशान्तपतित एवं भ्रष्टाचारी बन जाती है तब उनको पुन: पावन तथा सम्पूर्ण सुखी बनाने का कल्याणकारी कर्तव्य करते है शिव ब्रह्मलोक में निवास करते है और वे कर्म-भ्रष्ट तथा धर्म भ्रष्ट संसार का उद्धार करने के लिए ब्रह्मलोक से नीचे उतर कर एक मनुष्य के शरीर का आधार लेते है परमात्मा शिव के इस अवतरण अथवा दिव्य एवं अलौकिक जन की पुनीत-स्मृति में ही शिव रात्रि’, अर्थात शिवजयंती का त्यौहार मनाया जाता है |

परमात्मा शिव जो साधारण एवं वृद्ध मनुष्य के तम में अवतरित होते हैउसको वे परिवर्तन के बाद प्रजापिता ब्रह्मा नाम देते है उन्हीं की याद में शिव की प्रतिमा के सामने ही उनका वाहन नन्दी-गण दिखाया जाता है क्योंकि परमात्मा सर्व आत्माओं के माता-पिता हैइसलिए वे किसी माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते बल्कि ब्रह्मा के तन में संनिवेश ही उनका दिव्य-जन्म अथवा अवतरण है | 

अजन्मा परमात्मा शिव के दिव्य जन्म की रीति न्यारी

परमात्मा शिव किसी पुरुष के बीज से अथवा किसी माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते क्योंकि वे तो स्वयं ही सबके माता-पिता हैमनुष्य-सृष्टि के चेतन बीज रूप है और जन्म-मरण तथा कर्म-बन्धन से रहित है | अत: वे एक साधारण मनुष्य के वृद्धावस्था वाले तन में प्रवेश करते है इसे ही परमात्मा शिव का दिव्य-जन्म’ अथवा अवतरण’ भी कहा जाता है क्योंकि जिस तन में वे प्रवेश करते है वह एक जन्म-मरण तथा कर्म बन्धन के चक्कर में आने वाली मनुष्यात्मा ही का शरीर होता हैवह परमात्मा का अपना’ शरीर नहीं होता | 

अत: चित्र में दिखाया गया है कि जब सारी सृष्टि माया (अर्थात कामक्रोधलोभमोहअहंकार आदि पाँच विकारों) के पंजे में फंस जाती है तब परमपिता परमात्मा शिवजो कि आवागमन के चक्कर से मुक्त है, मनुष्यात्माओं को पवित्रतासुख और शान्ति का वरदान देकर माया के पंजे से छुड़ाते है वे ही सहज ज्ञान और राजयोग की शिक्षा देते है तथा सभी आत्माओं को परमधाम में ले जाते है तथा मुक्ति एवं जीवनमुक्ति का वरदान देते है | 

शिव रात्रि का त्यौहार फाल्गुन मासजो कि विक्रमी सम्वत का अंतिम मास होता हैमें आता है उस समय कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी होती है और पूर्ण अन्धकार होता है उसके पश्चात शुक्ल पक्ष का आरम्भ होता हुई और कुछ ही दिनों बाद नया संवत आरम्भ होता है अत: रात्री की तरह फाल्गुन की कृष्ण चतुर्दशी भी आत्माओं को अज्ञान अन्धकारविकार अथवा आसुरी लक्षणों की पराकाष्ठा के अन्तिम चरण का बोधक है इसके पश्चात आत्माओं का शुक्ल पक्ष अथवा नया कल्प प्रारम्भ होता हैअर्थात अज्ञान और दुःख के समय का अन्त होकर पवित्र तथा सुख अ समय शुरू होता है |

परमात्मा शिव अवतरित होकर अपने ज्ञानयोग तथा पवित्रता द्वारा आत्माओं में आध्यात्मिक जागृति उत्पन्न करते है इसी महत्व के फलस्वरूप भक्त लोग शिवरात्रि को जागरण करते है इस दिन मनुष्य उपवासव्रत आदि भी रखते है उपवास (उप-निकटवास-रहना) का वास्तविक अर्थ है ही परमत्मा के समीप हो जाना अब परमात्मा से युक्त होने के लिए पवित्रता का व्रत लेना जरूरी है | 

शिव और शंकर में अन्तर


बहुत से लोग शिव और शंकर को एक ही मानते हैपरन्तु वास्तव में इन दोनों में भिन्नता है आप देखते है कि दोनों की प्रतिमाएं भी अलग-अलग आकार वाली होती है शिव की प्रतिमा अण्डाकार अथवा अंगुष्ठाकार होती है जबकि महादेव शंकर की प्रतिमा शारारिक आकार वाली होती है | यहाँ उन दोनों का अलग-अलग परिचयजो कि परमपिता परमात्मा शिव ने अब स्वयं हमे समझाया है तथा अनुभव कराया है स्पष्ट किया जा रह है :-

महादेव शंकर

१. यह ब्रह्मा और विष्णु की तरह सूक्ष्म शरीरधारी है इन्हें महादेव’ कहा जाता है परन्तु इन्हें परमात्मा’ नहीं कहा जा सकता |
२.
 यह ब्रह्मा देवता तथा विष्णु देवता की रथ सूक्ष्म लोक मेंशंकरपुरी में वास करते है |
३. ब्रह्मा देवता तथा विष्णु देवता की तरह यह भी परमात्मा शिव की रचना है 
|
४. यह केवल महाविनाश का कार्य करते है
स्थापना और पालना के कर्तव्य इनके कर्तव्य नहीं है |

परमपिता परमात्मा शिव

१. यह चेतन ज्योति-बिन्दु है और इनका अपना कोई स्थूल या सूक्ष्म शरीर नहीं है, यह परमात्मा है |
२. यह ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर के लोक, अर्थात सूक्ष्म देव लोक से भी परे ‘ब्रह्मलोक’ (मुक्तिधाम) में वास करते है |
३. यह ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर के भी रचियता अर्थात ‘त्रिमूर्ति’ है |
४. यह ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर द्वारा महाविनाश और विष्णु द्वारा विश्व का पालन कराके विश्व का कल्याण करते है |

शिव का जन्मोत्सव रात्रि में क्यों ?

रात्रि’ वास्तव में अज्ञान, तमोगुण अथवा पापाचार की निशानी है अत: द्वापरयुग और कलियुग के समय को रात्रि कहा जाता है कलियुग के अन्त में जबकि साधूसन्यासीगुरुआचार्य इत्यादि सभी मनुष्य पतित तथा दुखी होते है और अज्ञान-निंद्रा में सोये पड़े होते हैजब धर्म की ग्लानी होती है और जब यह भरत विषय-विकारों के कर्ण वेश्यालय बन जाता हैतब पतित-पावन परमपिता परमात्मा शिव इस सृष्टि में दिव्य-जन्म लेते है इसलिए अन्य सबका जन्मोत्सव तो जन्म दिन’ के रूप में मनाया जाता है परन्तु परमात्मा शिव के जन्म-दिन को शिवरात्रि’ (Birth-night) ही कहा जाता है अत: यहाँ चित्र में जो कालिमा अथवा अन्धकार दिखाया गया है वह अज्ञानान्धकार अथवा विषय-विकारों की रात्रि का घोतक है |

ज्ञान-सूर्य शिव के प्रकट होने से सृष्टि से अज्ञानान्धकार तथा विकारों का नाश

जब इस प्रकार अवतरित होकर ज्ञान-सूर्य परमपिता परमात्मा शिव ज्ञान-प्रकाश देते है तो कुछ ही समय में ज्ञान का प्रभाव सारे विश्व में फ़ैल जाता है और कलियुग तथा तमोगुण के स्थान पर संसार में सतयुग और सतोगुण कि स्थापना हो जाती है और अज्ञान-अन्धकार का तथा विकारों का विनाश हो जाता है सारे कल्प में परमपिता परमात्मा शिव के एक अलौकिक जन्म से थोड़े ही समय में यह सृष्टि वेश्यालय से बदल कर शिवालय बन जाती है और नर को श्री नारायण पद तथा नारी को श्री लक्ष्मी पद का प्राप्ति हो जाती है इसलिए शिवरात्रि हीरे तुल्य है 

परमात्मा सर्व व्यापक नहीं है


एक महान भूल
परमात्मा सर्व व्यापक नहीं है
 ! यह कितने आश्चर्य की बात है कि आज एक और तो लोग परमात्मा को माता-पिता’ और पतित-पावन’ मानते है और दूसरी और कहते है कि परमात्मा सर्व-व्यापक हैअर्थात वह तो ठीकर-पत्थरसर्पबिच्छूवाराह, मगरमच्छचोर और डाकू सभी में है ! ओहअपने परम प्यारेपरम पावनपरमपिता के बारे में यह कहना कि वह कुते मेंबिल्ले मेंसभी में है – यह कितनी बड़ी भूल है ! यह कितना बड़ा पाप है !! जो पिता हमे मुक्ति और जीवनमुक्ति की विरासत (जन्म-सिद्ध अधिकार) देता हैऔर हमे पतित से पावन बनाकर स्वर्ग का राज्य देता हैउसके लिए ऐसे शब्द कहना गोया कृतघ्न बनना ही तो है !!!

यदि परमात्मा सर्वव्यापी होते तो उसके शिवलिंग रूप की पूजा क्यों होती यदि वह यत्र-तत्र-सर्वत्र होते तो वह दिव्य जन्म’ कैसे लेतेमनुष्य उनके अवतरण के लिए उन्हें क्यों पुकारते और शिवरात्रि का त्यौहार क्यों मनाया जाता यदि परमात्मा सर्व-व्यापक होते तो वह गीता-ज्ञान कैसे देते और गीता में लिखे हुए उनके यह महावाक्य कैसे सत्य सिद्ध होते कि मैं परम पुरुष (पुरुषोतम) हौंमैं सूर्य और तारागण के प्रकाश की पहुँच से भी प्रे परमधाम का वासी हूँयह सृष्टि एक उल्टा वृक्ष है और मैं इसका बीज हूँ जो कि ऊपर रहता हूँ |”

यह जो मान्यता है कि परमात्मा सर्वव्यापी है” – इससे भक्तिज्ञानयोग इत्यादि सभी का खण्डन हो गया है क्योंकि यदि ज्योतिस्वरूप भगवान का कोई नाम और रूप ही न हो तो न उससे सम्बन्ध (योग) जोड़ा जा सकता हैन ही उनके प्रति स्नेह और भक्ति ही प्रगट की जा सकती है और न ही उनके नाम और कर्तव्यों की चर्चा ही हो सकती है जबकि ज्ञान’ का तो अर्थ ही किसी के नाम, रूपधामगुणकर्मस्वभावसम्बन्धउससे होने वाली प्राप्ति इत्यादि का परीच है अत: परमात्मा को सर्वव्यापक मानने के कारण आज मनुष्य मन्मनाभाव’ तथा मामेकं शरणं व्रज’ की ईश्वराज्ञा पर नहीं चल सकते अर्थात बुद्धि में एक ज्योति स्वरूप परमपिता परमात्मा शिव की याद धारण नहीं कर सकते और उससे स्नेह सम्बन्ध नहीं जोड़ सकते बल्कि उनका मन भटकता रहता है परमात्मा चैतन्य हैवह तो हमारे परमपिता है, पिता तो कभी सर्वव्यापी नहीं होता अत: परमपिता परमात्मा को सर्वव्यापी मानने से ही सभी नर-नारी योग-भ्रष्ट और पतित हो गये है और उस परमपिता की पवित्रता-सुख-शान्ति रूपी बपौती (विरासत) से वंचित हो दुखी तथा अशान्त है | 

अत: स्पष्ट है कि भक्तों का यह जो कथन है कि – ‘परमात्मा तो घट-घट का वासी है’ इसका भी शब्दार्थ लेना ठीक नहीं है | वास्तव में गत’ अथवा हृदय’ को प्रेम एवं याद का स्थान माना गया है द्वापर युग के शुरू के लोगों में ईश्वर-भक्ति अथवा प्रभु में आस्था एवं श्रद्धा बहुत थी कोई विरला ही ऐसा व्यक्ति होता था जो परमात्मा को ना मानता हो अत: उस समय भाव-विभोर भक्त यह ख दिया करते थे कि ईश्वर तो घट-घट वासी है अर्थात उसे तो सभी याद और प्यार करते है और सभी के मन में ईश्वर का चित्र बीएस रहा है इन शब्दों का अर्थ यह लेना कि स्वयं ईश्वर ही सबके ह्रदयों में बस रहा हैभूल है |

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